गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
भोजन करनेका एक आध्यात्मिक उद्देश्य है। इस सम्बन्धमें भगवान् श्रीकृष्णने गीताजीमें सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण उत्पन्न करनेवाले भोजनोंकी ओर संकेत किया है। जिस व्यक्तिका जैसा भोजन होगा, उसका आचरण भी तदनुकूल होता जायगा। भोजनसे हमारी इन्द्रियाँ और मन संयुक्त हैं-
आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः, सत्त्वशुद्धौ युवा स्मृतिः,
स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः। (छान्दोग्य०)
अर्थात् 'आहारकी शुद्धिसे सत्त्वकी शुद्धि होती है। सत्त्वकी शुद्धिसे बुद्धि निर्मल और निश्चयी बन जाती है, फिर पवित्र और निश्चयी बुद्धिसे शक्ति भी सुलभतासे प्राप्त होती है।'
जिन्हें काम, क्रोध, उत्तेजना, चञ्चलता, निराशा, उद्वेग, घबराहट, शक्तिहीनता या अन्य कोई मनोविकार है, उन्हें उसकी चिकित्सा भोजनद्वारा ही करनी चाहिये। सात्त्विक भोजनसे चित्त निर्मल हो जाता है, बुद्धिमें स्फूर्ति रहती है। अध्यात्म-जगत्में उपवासका अत्यधिक महत्त्व है। अधिक खाये हुए अन्न पदार्थको पचाने और उदरको विश्राम देनेके लिये हमारे ऋषियोंने उपवासकी योजना की है। चित्तवृत्तियाँ भोजनमें लगी रहनेसे किसी उच्च विषयपर ध्यान एकाग्र नहीं होता। उपवास, काम, क्रोध, रोगादि फीके पड़ जाते हैं और मन हठात् दुष्कर्मसे प्रवृत्त नहीं होता। सात्त्विक अल्पाहार करनेवाले व्यक्ति अध्यात्ममार्गमें दृढ़तासे अग्रसर होते हैं। जो अन्न बुद्धिवर्धक हो, वीर्यरक्षक हो, उत्तेजक न हो, कब्ज न करे, रक्त दूषित न करे, सुपाच्य हो-वह सत्त्वगुण युक्त आहार है। अध्यात्म-जगत्में उन्नति करने के इच्छुकोंको, पवित्र विचार और अपनी इन्द्रियोंको वशमें रखनेवाले तथा ईश्वरीय तेज उत्पन्न करनेवाले अभ्यासियोंको सात्त्विक आहार करना चाहिये।
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